भोरमदेव मंदिर: छत्तीसगढ़ का “खजुराहो”, जहां इतिहास और कला का है अद्भुत संगम
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव मंदिर एक ऐसा ऐतिहासिक धरोहर है जो अपनी नागर शैली की वास्तुकला और अलौकिक शिल्पकारी के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसे “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि कलात्मक दृष्टि से भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से:
इतिहास और महत्व
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भोरमदेव मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था।
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहाँ “भोरमदेव” के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।
- मान्यता है कि इस मंदिर का नाम राजा भोरमदेव के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस क्षेत्र पर शासन किया था।
वास्तुकला और शिल्पकला
- नागर शैली: भोरमदेव मंदिर का ढाँचा उत्तर भारतीय नागर शैली में बना है, जिसमें ऊँचा शिखर और गर्भगृह की विशेषता है।
- कामुक मूर्तियाँ: खजुराहो की तरह यहाँ की दीवारों पर देवी-देवताओं, नृत्यांगनाओं, और प्रेमी जोड़ों की कामुक मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। ये कलाकृतियाँ तंत्र साधना और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
- मंदिर परिसर: मुख्य मंदिर के अलावा, यहाँ मंडव महल (विवाह मंडप), चेरकी महल (खंडहर), और एक संग्रहालय भी है, जहाँ प्राचीन मूर्तियाँ रखी गई हैं।
कैसे पहुँचें?
- निकटतम शहर: कवर्धा (18 किमी)।
- हवाई मार्ग: स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा, रायपुर (120 किमी) से टैक्सी या बस द्वारा 3-4 घंटे का सफर।
- रेल मार्ग: कवर्धा रेलवे स्टेशन (20 किमी) या जबलपुर-बिलासपुर रेल लाइन पर स्थित राजनांदगाँव स्टेशन (75 किमी)।
- सड़क मार्ग: रायपुर से कवर्धा तक NH30 होते हुए सीधी बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
घूमने का सही समय
- अक्टूबर से मार्च: मौसम सुहावना रहता है, तापमान 15°C से 28°C के बीच।
- विशेष आयोजन: हर साल मार्च में “भोरमदेव नृत्य महोत्सव” आयोजित होता है, जहाँ कथक, ओडिसी, और छत्तीसगढ़ी लोक नृत्यों की प्रस्तुति होती है।
आसपास के आकर्षण
- कान्हा नेशनल पार्क (150 किमी): बाघों और वन्यजीवों को देखने का मौका।
- मैकल पर्वतमाला: हरे-भरे पहाड़ों और घाटियों का मनोरम दृश्य।
- राजनांदगाँव: 52 गजा मंदिर और दुर्गा मंदिर के लिए प्रसिद्ध।
याद रखने योग्य बातें
- प्रवेश शुल्क: नि:शुल्क, लेकिन संग्रहालय के लिए नाममात्र का शुल्क।
- फोटोग्राफी: मूर्तियों की फोटो लेने की अनुमति है, लेकिन फ्लैश का उपयोग न करें।
- स्थानीय व्यंजन: कवर्धा के “चीला” (चावल का पैनकेक) और “मुथिया” (नमकीन स्नैक) जरूर ट्राई करें।
क्यों जाएँ भोरमदेव?
यह मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, कला, और प्रकृति का संगम है। यहाँ की शांति और प्राचीन वातावरण आपको समय के पन्नों में खो जाने का अहसास दिलाएगा।