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मामा-भांजा मंदिर बारसूर (छत्तीसगढ़) – इतिहास, रहस्य और आस्था का अनोखा संगम

छत्तीसगढ़ की पावन धरती पर स्थित मामा-भांजा मंदिर, बारसूर ,एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जो अपनी अनूठी कलात्मकता और रहस्यमयी कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों और इतिहासप्रेमियों के लिए भी एक आकर्षण है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर गांव में स्थित मामा-भांजा नाम का एक मंदिर स्थित है।आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से:

 

मामा-भांजा मंदिर का इतिहास और स्थापत्य

स्थान:

मामा-भांजा मंदिर, बारसूर (छत्तीसगढ़)

बारसूर, दंतेवाड़ा जिला, छत्तीसगढ़ (राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 400 किमी दूर)।
निर्माणकाल: 11वीं-12वीं शताब्दी (कलचुरी वंश के शासनकाल में)।11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी साम्राज्य के तात्कालिक राजा बाणासुर ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।

  • वैसे तो ये मंदिर शिव को समर्पित है, लेकिन इसका नाम ‘मामा-भांजा मंदिर’ है।
  • कहा जाता है कि ‘मामा’ और ‘भांजा’ दो शिल्पकार थे, जिन्हें ये मंदिर सिर्फ एक दिन में ही पूरा करने का काम मिला था। उन दोनों ने मंदिर एक दिन में बना दिया था।

स्थापत्य शैली: नागर शैली में बना यह मंदिर पत्थरों की जटिल नक्काशी और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के गर्भगृह में मामा-भांजा की मूर्तियां स्थापित हैं।

 

मामा भांजा मंदिर

मामा-भांजा मंदिर कैसे पहुंचें?

नजदीकी रेलवे स्टेशन: दंतेवाड़ा रेलवे स्टेशन (लगभग 35 किमी)।
नजदीकी हवाई अड्डा: स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर (400 किमी)।
सड़क मार्ग: बारसूर, दंतेवाड़ा से बस या टैक्सी द्वारा जुड़ा हुआ है।

 

यात्रा टिप्स
सबसे अच्छा समय: अक्टूबर से मार्च (मौसम सुहावना रहता है)।
आसपास के आकर्षण: बारसूर के अन्य प्राचीन मंदिर जैसे चंद्रादित्य मंदिर ,बत्तीसा मंदिर और गणेश मंदिर भी देखें।
सावधानी: मंदिर परिसर पुरातात्विक संरक्षण में है, इसलिए नियमों का पालन करें।

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मामा-भांजा मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यहां की रहस्यमयी कहानियां और अद्भुत कला पर्यटकों को ऐतिहासिक यात्रा पर ले जाती हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ की यात्रा कर रहे हैं, तो इस मंदिर को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें!